Monday 28 September, 2009

विजय हो सत्य की / अशोक लव

समाज में सत्य और असत्य के मार्ग पर चलने वालों में युगों से संघर्ष चलता रहा हैव्यवहारिक रूप में हम असत्य को जीतते हुए भी देखते हैंइससे निराशा के भाव जागृत होना स्वाभाविक हैइन भावों से मुक्ति के लिए समय-समय पर पर्व -त्योहार आते हैंइन त्योहारों के साथ कथाएँ जुड़ी होती हैंइनके माध्यम से प्रेरणा दी जाती है कि अंततः सत्य की विजय होती है
भारत में शक्ति के रूप में माँ दुर्गा और आदर्श मर्यादित आचरण करने के लिए श्री राम जन-जन के आराध्य हैंदुर्गा -पूजा और दशहरा "विजय-दशमी " के रूप में मनाये जाने वाले त्योहार हैंमहिषासुर और रावण रूपी अत्याचारियों के वध से जन-जन में व्याप्त भय और आतंक का अंत हुआ थाआज विजय -दशमी हैआज का समाज विभिन्न रूपों में भय और आतंक उत्पन्न करने वाली शक्तियों से ग्रसित हैमहिषासुर बलात्कारियों और दहेज़-लोभियों आदि के अनेक रूप धारण करके नारियों पर अत्याचार कर रहे हैंरावण गली-गली में छुट्टे घूम रहे हैंक़ानून नाम की कोई व्यवस्था नहीं रहीराजनेता समाज के हित के लिए नहीं , स्वजन और स्वयं के हित के लिए समस्त मर्यादाओं को ताक पर रखकर येन-केन-प्रकारेण धन एकत्रित करने में जुटे हैंसत्ता पाने और सत् में बने रहने के लिए वे किसी भी अधम कार्य को करने में संकोच नहीं करते
विजय-दशमी के पर्व पर केवल महिषासुर और रावण के वध से हर्षित होने से समाज का रूप नहीं बदलेगाइसके लिए समाज की महिषासुरी और रावणी शक्तिओं के विनाश की कामना भी करनी चाहिएजन-जन के लिए राम से नेतृत्व की कामना करनी चाहिए
आप सबको विजय-दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

Wednesday 23 September, 2009

पीरागढ़ी में बसा कश्मीर / अशोक लव

पीरागढ़ी चौक के बगल में
सोया है शरणार्थी बना
झुलसा कश्मीर ।

कश्मीर के लिए
नेता कर आते हैं यात्राएँ
घूम-घूम आते हैं देश-देश ,
कागज़ों पर दौड़ा आते हैं कश्मीर
लौटकर मखमली बिस्तरों में सो जाते हैं।

पीरागढ़ी के तम्बुओं को चीरती हैं सर्द हवाएँ
कंपकंपा देती हैं
पीरागढ़ी के तम्बुओं में घुस जाती हैं गर्म हवाएँ
झुलसा देती हैं
हवाएँ नहीं देखती बाल,युवा, वृद्ध देहें
सब पर कहर बरपाती रहती हैं।

किसे फुर्सत है पीरागढ़ी आने की?
किसे है फुर्सत पीरागढ़ी की खबरें छापने की ?
संसद में नहीं घूमती पीरागढ़ी
अख़बारों में नहीं छपती पीरागढ़ी
कविताओं में नहीं आती पीरागढ़ी।

कंपकंपाती देहों के संग
झुलसी देहों के संग
निकलता है पीरागढ़ी के तम्बुओं से कश्मीर
घूम आता है राजनीति के गलियारों में
खटखटा आता है सांसदों के द्वार
सब बहरे बन जाते हैं
कोई नहीं सुनता कश्मीर की आवाज़
जागी आँखों से सब देखते हैं कश्मीर को
कोई नहीं रोककर पूछता
उसके ज़ख्मों का हाल।

जिनकी देह पर खालों की परतें जमी होती हैं
जिनकी देहों पर बुलेट-प्रूफ़ कसे होते हैं
जिन्हें नहीं झुलसा पाती गर्म हवाएँ
उन्हें कश्मीर के ज़ख्मों की पीड़ाओं का क्या पता!

लौट आता है पीरागढ़ी के तम्बुओं में
शरणार्थी कश्मीर,
कच्ची गलियों में बहते गंदे पानी में-
डल झील के सपने देखता ,
पीरागढ़ी के फ्लाईओवर की ऊँचाई में-
गुलमर्ग की पहाड़ियों को देखता
कश्मीर!
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पुस्तक-लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
@सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday 21 September, 2009

लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान / अशोक लव




लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
परन्तु उनके पंखों पर बाँध दिए गए हैं
परम्पराओं के
पत्थर ताकि वे उड़ान भर सकें
और कहीं छू लें आसमान।

लड़कियों की छोटी - छोटी ऑंखें
देखती हैं बड़े-बड़े स्वप्न
वे देखती हैं आसमान को ,
आँखों ही आँखों में
नापती हैं उसकी ऊंचाइओं को।

जन्म लेते ही
परिवार में जगह बनने के लिए
हो जाता है शुरू उनका संघर्ष
और होती जाती हैं ज्यों-ज्यों
बड़ी उनके संघर्षों का संसार बढ़ता जाता है।

गाँवों की लड़कियाँ
कस्बों-तहसीलों की लड़कियाँ
नगरों-महानगरों की लड़कियां
लडकियां तो लड़कियाँ ही होती हैं
उनके लिए जंजीरों के नाप
एक जैसे ही होते हैं।


लड़कियाँ पुरुषों की मांद में घुसकर
उन्हें ललकारना चाहती हैं
वे उन्हें अंगड़ाई लेते समय से
परिचित कराना चाहती हैं।

पुरुष उनके हर कदम के
आगे खींच देते हैं लक्ष्मण-रेखाएं
लड़कियाँ जान गई हैं -
पुरुषों के रावणत्व को
इसलिए वे
अपाहिज बन नहीं रहना चाहतीं बंदी
लक्ष्मण - रेखाओं में ,
वे उन समस्त क्षेत्रों के चक्रव्यूहों को भेदना
सीख रही हैं
जिनके रहस्य समेटरखे थे पुरुषों ने।

वे गाँवों की गलियों से लेकर
संसद के गलियारों तक की यात्रा करने लगी हैं
उनके हृदयों में लहराने लगा है
समुद्र का उत्साह
अंधडों की गति से
वे मार्ग की बाधाओं को उडाने में हैं सक्षम।

वे आगे बढ़ना चाहती हैं
इसलिए पढ़ना चाहती हैं
गांवों की गलियों से निकल
स्कूलों की ओर जाती
लड़कियों की कतारों की कतारें
सड़कों पर
साइकिलों की घंटियाँ बजाती,
बसों में बैठी
लड़कियों की कतारों की कतारें
लिख रही हैं
नया इतिहास।

लोकल ट्रेनों -बसों से
कालेजों - दफ्तरों की ओर जाती लडकियां
समय के पंखों पर सवार होकर
बढ़ रही हैं
छूने आसमान।

उन्होंने सीख लिया है -
पुरूषपक्षीय परम्पराओं के चिथड़े -चिथड़े
उन्होंने कर लिया है निश्चय
बदलने का अर्थों को ,
उन ग्रंथों में रचित
लड़कियों विरोधी गीतों का
जिन्हें रचा था पुरुषों ने
अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए।

लड़कियाँ
अपने रक्त से लिख रही हैं
नए गीत
वे पसीने की स्याही में डुबाकर देहें
रच रही हैं
नए ग्रंथ।

वे खूब नाच चुकी हैं

पुरुषों के हाथों की कठपुतलियाँ बनकर ,

पुरुषों ने कहा था --लेटो

वे लेट जाती थीं ,

पुरुषों ने कहा था --उठो

वे उठ जाती थीं,

पुरुषों ने कहा था - झूमो

वे झूम जाती थीं।

अब लड़कियों ने थाम लिए हैं

कठपुतलियाँ नचाते ,

पुरुषों के हाथ

वे अब उनके इशारों पर

न लेटती हैं

न उठती हैं

न घूमती हैं

न झूमती हैं

वे पुरुषों के एकाधिकार के तमाम क्षेत्रों में

कराने लगी हैं प्रवेश

लहराने लगी हैं उन तमाम क्षेत्रों में

अपनी सफलताओं के ध्वज ,

गाँवों - कस्बों, नगरों - महानगरों की लड़कियों का

यही है अरमान

वे अब छू ही लेंगीं आसमान।

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* पुस्तक - लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान

@सर्वाधिकार सुरक्षित

पेंटिंग- सहारा ' अशोक लव

Thursday 17 September, 2009

Friday 11 September, 2009

*लघुकथा " न सबूत न गवाह " / अशोक लव

एक ही बस्ती की पचासों लड़कियों के अपहरण , बलात्कार और उनकी हत्याओं ने समाचार-पत्र रंग दिए। दसियों लड़कियों के शव , वस्त्र और अवशेष मिले तो घर-घर में आंतक गया। क्या छोटे,क्या बड़े ,क्या अमीर.क्या गरीब, सब अपराधियों को बीच चौराहे फाँसी पर चढ़ा की बातें करने लगे। संसद में गरमागरम बहसें छिड़ गईं
पुलिस के उच्चाधिकारी और अपराधी सौदेबाज़ी कर रहे थे
डी सी पी ने कहा , ' सतविंदर , तू चिंता मत कर। त्र तो बाल भी बांका होगा। मैं तुम्हें साफ़ बच्चा ले जाऊँगा। कोर्ट सबूतों के आधार ही तो फ़ैसला करेगा। सबूत होंगे , गवाह। मुकद्दमा चलते-चलते दस साल लग जायेंगे लोगों को याद ही नहीं रहेगा। दस सालों में दुनिया बदल जाएगी हाँ बता, कितने खर्च करेगा ?'
सतविंदर ने चैन की साँस ली। जेल में वह पहली बार मुस्कराया फिर ज़ोर का ठहाका लगाया। खुशी में वह कुर्सी से उछल पड़ा डी सी पी की और हाथ बढ़ाया , ' यार डी सी पी तू अपने मुँह से कह दे। जितने करोड़ कहेगा उतने में सौदा पक्का। '
जेल की चारदीवारी के बाहर मृतक बालिकाओं के माता-पता और परिजनों का रुदन आसमान फाड़े जा रहा था।
चारदीवारी के भीतर सब निर्णय हो गए थे। *
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* पुस्तक - खिड़कियों पर टंगे लोग ( लघुकथा - संग्रह , संपादक- अशोक लव , वर्ष २००९ ) से
* @ कॉपीराइट सुरक्षित।

Wednesday 9 September, 2009

मन में मनमोहन / अशोक लव




मन में मनमोहन को बसा लें तो यह संसार कृष्णमय हो जाता है. आनंद ही आनंद ! मन को मोह लेने वाले मनमोहन की बाँसुरी की गूँज हृदय के प्रत्येक कोने को मंत्रमुग्ध कर अलौकिक आनंद में डुबा लेती है. न चिंता , न मोहमाया , न ईर्ष्या , न द्वेष ! बस कृष्ण ही कृष्ण ! मनमोहन ही मनमोहन !
मन जब कृष्णमय हो जाएगा फिर संसार के प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाएगा. संसार की सारहीनता सामने आ जाएगी . मन न भटकेगा , न कहीं अटकेगा , सब आनंदमय लगेगा , कुछ नहीं खटकेगा. मीरा के समान- " मैं श्याम की मेरे श्याम ! इस संसार से अब क्या काम ! " न धन एकत्र करने की चाह , न यश की चाह ! न अपेक्षाएँ , न उपेक्षाओं की पीड़ाएं ! बस प्रेम ही प्रेम ! मन को गोपी बना लें और श्री कृष्ण की रट लगा लें . मन कृष्ण की रासलीला का अंग बना नहीं कि सब कुछ बदल जाएगा. सांसारिक वासनामय लीलाओं से मुक्ति मिल जाएगी . सांसारिक आकर्षणों से मुक्त हुए नहीं कि मनमोहन में मन आसक्त हो जाएगा. उस मनमोहन की शरण में पहुँच गए तो फिर काहे की भटकन.
पहले मन को नियंत्रित करना पड़ेगा. संसार की सारहीनता को समझना पड़ेगा. मन को वृन्दावन बनाना पड़ेगा. कृष्ण तभी तो मन-वृन्दावन में अवतरित होंगे.
चल रे मन अब कृष्ण की शरण ! बसा ले मन में मनमोहन !

Monday 7 September, 2009

सृजन का सहयोग --ऑरकुट में स्तम्भ से

Vinu

लड़कियां छूना चाहती है आसमान..(श्री अशोक लव जी)

लड़कियां छूना चाहती है आसमान..
मित्रो "लड़कियां छूना चाहती है आसमान" श्री अशोक लव जी की लिखी हुई पुस्तक का नाम है. जिसमें ४ खंडो मैं ५३ कवितायेँ लिखी गयी है. मैं कुछ और कहने से पहले श्री अशोक लव जी का एक संक्षिप्त परिचय आप लोगों को देना चाहूँगा.
श्री अशोक लव जी बहुयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकारों मैं से एक है . वे कवि, कथाकार, शिक्षाविद, पत्रकार, और समाज सेवी के रूप मैं एक उत्कृष्ट पहचान रखते है उनकी अनेक साहित्यिक और शैक्षिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है उनके उपन्यास "शिखरों से आगे " पर शोधकार्य हुए है.उनकी चर्चित कृतियाँ है सलाम दिल्ली( लघुकथा संग्रह),पत्थरों से बढ़ें पंख( कहानी संग्रह),अनुभूतियों की आहटें (कविता संग्रह),उनकी पुस्तक "हिंदी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार" का विमोचन भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा जी के कर कमलो से संपादित हुआ.उनकी अन्य कृतियों मैं टूटते चक्रव्यूह (सं. कविता संकलन ), बंद दरवाजों पर दस्तकें(सं.लघुकथा संकलन),चाणक्य निति (सं),प्रेमचंद्र की लोकप्रिय कहानिया, प्रेमचंद्र की सर्वोत्तम कहानिया,युग प्रवर्तक महापुरुष, युग नायक महापुरुष, मधु पराग, संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (सं),संक्षिप्त महाभारत(सं), बुद्धचरित (सं),कदम-कदम, महक (बालगीत)फुलवारी(बालगीत).श्री अशोक लव जी को साहित्य मैं उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए विद्यावाचस्पति,विद्यासागर, साहित्य मनीषी,साहित्यालंकार, अदि कई सम्मानों और उपाधियों से अलंकृत किया गया है.
श्री अशोक लव जी ने आभा जी के विशेष अनुरोध पर अपनी पुस्तक " लड़कियां छूना चाहती है आसमान".को सृजन पर प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान की है जिसके लिए हम उनके आभारी है.
सामाजिक सरोकार से जुडी श्री अशोक लव जी की कविताओं का सृजन पर प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है आशा ही नहीं अपितु हमारा पूर्ण विश्वास है की उनकी रचनाये सभी साहित्य प्रेमी पाठकों को प्रेरणा प्रदान करेंगी.
पुस्तक का प्रारंभ है "कविता लड़कियां छूना चाहती है आसमान। से " जो की शीर्षक कविता है॥ प्रथम खंड "नारी" की परन्तु मैं इस कड़ी की शुरुआत अपनी पसंदीदा कविता "माँ और कविता" (इसी खंड) से कर रहा हूँ.
ऑरकुट के "सृजन का सहयोग "--से

Saturday 5 September, 2009

शिक्षक - दिवस पर शुभकामनाएँ


"प्रत्येक देश को दिशा देने में सबसे अहम भूमिका समर्पित भाव से कार्य करने वाले शिक्षकों की होती है. वे नन्हे बालक-बालिकाओं ,किशोरों और युवाओं को संस्कारवान , ज्ञानवान और कर्तव्यनिष्ठ बनाते हैं. समाज और प्रत्येक नागरिक को ऐसे समर्पित शिक्षकों का आभार मानते रहना चाहिए. उनके प्रति आदर भाव रखना चाहिए. " अशोक लव (शिक्षक - दिवस ५ सितम्बर २००९ )